डॉ डी. के. टकनेत ने मारवाड़ी समाज के अतीत और वर्तमान को इस पुस्तक में प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। उनके इस लेखन में शोध की दीप्ति दिखाई पड़ती है। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
डॉ शंकर दयाल शर्मा, उपराष्ट्रपति, भारत गणतंत्र।
अब तक प्राप्य विविध प्रकार की जानकारी को लेखक ने अपने वर्षों के परिश्रम से सुव्यवस्थित कालक्रम में प्रस्तुत कर इस ग्रन्थ को प्रामाणिक पठनीय और संग्रहणीय बना दिया है। पुस्तक की उपादेयता को देखते हुए निश्चित रूप से इसका भारतीय भाषाओं से अनुवाद होना चाहिए।
प्रभु चावला, वरिष्ठ सम्पादक, इंडिया टुडे, नई दिल्ली।
इस पुस्तक में मारवाड़ी समाज के औद्योगिक कृतित्व को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। मारवाड़ी व्यापारियों की सफलता के कारणों का वैज्ञानिक ढ़ंग से शोधपूर्ण अध्ययन काफी उपयोगी है। आर्थिक इतिहास की दिशा में यह महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें सामग्री का चयन काफी सूझबूझ से किया गया है।
आबिद हुसैन, सदस्य, योजना आयोग, नई दिल्ली।
मारवाड़ी समाज की पुरानी बहियों, परवानों व अन्य प्राथमिक सामग्री के आधार पर तैयार की गई यह शोधपरक पुस्तक व्यापारिक जातियों के इतिहास में भी उल्लेखनीय ग्रन्थ है। तथ्यों की गहरी छानबीन से पुस्तक बहुत अधिक उपयोगी बन गई है।
डॉ ए. एम. खुसरो, सुविख्यात अर्थशास्त्री, नई दिल्ली।
डॉ डी. के. टकनेत ने मौलिक ग्रन्थों के अध्ययन और कठोर परिश्रम से इस पुस्तक को तैयार किया है। उन्होंने मारवाड़ियों के केवल व्यावसायिक योगदान पर ही नहीं बल्कि कई अन्य विषयों पर भी लिखा है। विशेषतौर से स्वतंत्रता आंदोलन में मारवाड़ियों के योगदान पर नई जानकारी पहली बार विस्तृत रूप से सामने आई है। पुस्तक की उपादेयता मोहक चित्रों, तालिकाओं, पाद-टिप्पणियों एवं परिशिष्टों से और भी बढ़ गई है। श्री टकनेत का यह प्रयास सराहनीय है।
राजेन्द्र माथुर, प्रधान सम्पादक, नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली।
डॉ टकनेत ने क्रमबद्ध तरीके से मारवाड़ी समाज की आर्थिक प्रगति के साथ-साथ उसके कारणों की भी विशद् व्याख्या की है।…यह पुस्तक शोध की नई दिशाओं की ओर इंगित करती है।
हितेन भाया, प्रमुख प्रबंधशास्त्री एवं सदस्य, योजना आयोग, नई दिल्ली।
पुस्तक ‘मारवाड़ी समाज’ को एक दिन में ही पूरी पढ़ गया। यह मेरे लिए भी ताज्जुब की बात है…जिस तरह से यह किताब लिखी गयी, सभी दृष्टि से मुझे अच्छी और उपयुक्त लगी। आवश्यक सभी विषयों का चयन एवं चर्चा इसमें हो गई।…सच्चाई का भी ख्याल रखा गया है और अतिशयोक्ति करने से भी बच पाये हैं। यह अपने आप में बड़ी सिद्धि है।
रामकृष्ण बजाज, सुप्रसिद्ध उद्योगपति, मुम्बई।
ऐतिहासिक लेखन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस पुस्तक में मारवाड़ियों के सामाजिक, व्यापारिक एवं राजनीतिक इतिहास को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है। मारवाड़ी समाज के पूर्ण इतिहास के संबंध में यह एक नूतन एवं समग्र प्रयास है। लेखक की पैनी दृंिष्ट इस समाज के जिस किसी भी पक्ष के निरूपण की ओर घूमी है, उसका बारीकी से विश्लेषण किया गया है। डॉ टकनेत ने अनेक विद्वानों के महत्वपूर्ण ग्रन्थों के उद्धरणों से अपने कथन की परिपुष्टि की है, जो लेखक के गंभीर अध्ययन एवं परिश्रम का पारिचायक है।
हरि नारायण निगम, सम्पादक, दैनिक हिन्दुस्तान, नई दिल्ली।
वास्तव में मारवाड़ी समाज के पूर्ण इतिहास के संबंध में इस प्रकार की कृति की आवश्यकता बहुत समय से थी। इस अभाव की पूर्ति डॉ डी के टकनेत ने अपने पुष्ट लेकिन सहज-सुबोध लेखन से की है। पुस्तक प्रामाणिक होने के साथ ही प्रेरक भी है, जिसमें मारवाड़ी समाज से सम्बन्धित काफी सारगर्भित विषय सामग्री है जो पूर्व में उपलब्ध नहीं थी।
संतोष बागड़ोदिया, राज्य सभा सदस्य।
आर्थिक अभ्युद्य पर कुछ काम जरूर हुआ है किन्तु वह प्रशंसा मूलक होने से वह प्रभाव नहीं छोड़ सका जो एसी कृति से अपेक्षित रहता है। इस शोध अध्ययन के जरिए मारवाड़ी समाज के इतिहास के सम्बन्ध में समन्वित दृष्टिकोण अपनाकर इस कमी को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।…मारवाड़ी समाज ही नहीं बल्कि भारत के आर्थिक अभ्युद्य में रूचि रखने वालों को यह कृति महत्वपूर्ण लगेगी।…कृति पठनीय एवं उपयोगी है।
राजस्थान पत्रिका, जयपुर।
मारवाड़ी समाज के आगे बढ़ने के कारणों का पता लगाने के लिए अनेक सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों में देखना जरूरी है। इस दिशा में डॉ डी. के. टकनेत ने एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया है। जिससे मारवाड़ियों के अतीत और वर्तमान के बारे में व्यापक जानकारी ही नहीं मिलती बल्कि लेखक ने उनके भविष्य पर भी नजर डाली है।
दैनिक जनसत्ता, नई दिल्ली।
इस किताब में जिस विस्तार के साथ मारवाड़ी समाज के इतिहास, उनके मूल राजस्थानी इलाकों, उनके प्रवास, काम करने की शैली, परदेस में उनकी व्यावसायिक उपलब्धियों, आजादी के आंदोलन में उनके योगदान और मारवाड़ी समाज की भीतरी कमजोरियों का वर्णन किया गया है, वह इसे एक अव्वल दर्जे के संदर्भ ग्रंथ में रखने के लिए काफी है।…यह आर्थिक-व्यावसायिक इतिहास का एक अच्छा नमूना है।…यह किताब न केवल शोधकर्मियों और मारवाड़ी समाज के बारे में जानने के इच्छुक लोगों के लिए एक उपयोगी ग्रन्थ है बल्कि युवा मारवाड़ी पीढ़ी के लिए भी एक नए आत्मविश्वास का स्त्रोत सिद्ध हो सकती है।
विजय क्रान्ति, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली।
पुस्तक की छपाई अच्छी है। कुल मिलाकर एक संग्रहणीय तथा समाज के प्रति आपके समर्पण का एक चिरस्मरणीय शोध ग्रन्थ है। इसके लेखन के लिए सारा समाज आपका ऋणी रहेगा।
वीरेन्द्र जालान, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच, गुवाहाटी।