डांॅ टकनेत ने प्रस्तुत पुस्तक में शोधपूर्ण अध्ययन तथा रोचक शैली द्वारा श्री ब्रजमोहन बिड़ला के व्यक्तित्व और कृतित्व को यथार्थ रूप से उजागर करने का सार्थक प्रयास किया है। विश्वास है कि यह पुस्तक युवाओं में नई चेतना व देश के लिए समर्पित होने की भावना का संचार करेगी।
पी. वी. नरसिंह राव, भूतपूर्व प्रधानमंत्री, भारत गणतंत्र।
डांॅ टकनेत ने अपनी पुस्तक में मारवाड़ी समाज और ब्रजमोहन बिड़ला के राष्ट्र निर्माण के कार्यों में किए गए योगदान को संकलित करके एक सराहनीय प्रयास किया है। चन्द्रशेखर, भूतपूर्व प्रधानमंत्री, भारत गणतंत्र।
डां टकनेत ने गहरे अध्ययन के आधार पर मारवाड़ी समाज और ब्रहमोहन बिड़ला की सेवाओं पर बड़ी रोचक शैली में प्रकाश डाला है।
अटल बिहारी वाजपेयी, भूतपूर्व प्रधानमंत्री, भारत गणतंत्र।
श्री ब्रजमोहन बिड़ला ने औद्योगिक विकास को नई दिशा देकर देश की संस्कृति एवं टेक्नालॉजी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ टकनेत ने अपनी पुस्तक में देश के विकास में मारवाड़ी समाज एवं श्री ब्रजमोहन बिड़ला की भूमिका पर समुचित प्रकाश डाला है, जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
डांॅ राजा. जे. चलैय्या, राजकोषीय सलाहकार, राज्य मंत्री, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार।
डांॅ डी. के. टकनेत ने इस पुस्तक के माध्यम से इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, प्रबंध और हिन्दी विषयों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।…अधिकांशतः व्यावसायिक जातियों और बड़े उद्योगपतियों पर लिखी गयी पुस्तकों में विश्वसनीयता या पाठकों को बांधे रखने की क्षमता का अभाव होता है लेकिन डॉ टकनेत ने अपनी इस कृति को सारगर्भित विषय-सामग्री, तथ्यों की गहरी छानबीन और विशद् अध्ययन द्वारा प्रामाणिक और सहज लेखन द्वारा पठनीय बना दिया है, जो पाठकों को प्रारंभ से अंत तक जोड़े रखती है। पुस्तक के महत्व को मद्देनजर रखते हुए इसका अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए।
खुशवंत सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली।
यह पुस्तक मारवाड़ी समाज के अध्ययन की शृंखला में लेखक की तीसरी पुस्तक है। श्री टकनेत ने इस सम्पन्न व्यवसायिक समाज की अनेक क्षेत्रों में जो देन है, उसका गंभीर अध्ययन किया है। उन्होंने सम्पन्नता के सकारात्मक पक्ष को इस प्रकार व्यक्ति के माध्यम से उजागर किया है।
विद्या निवास मिश्र, प्रधान सम्पादक, नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली।
नवयुवकों को प्रेरित करने के लिए ऐसी पुस्तकों का बहुत ही महत्व है। यहां अमेरिका जैसे देशों में तो ऐसी पुस्तकें बहुत सफल होती हैं…पुस्तक छपाई, भाषा तथा शैली की दृष्टि से भी बहुत श्रेष्ठ है।
प्रो भूदेव शर्मा, प्रधान सम्पादक, विश्व विवेक, अमेरिका।
डांॅ टकनेत की पहली पुस्तक ‘मारवाड़ी समाज’ और बिड़ला परिवार के एक उद्यमी का यह जीवन चरित्र, मारवाड़ी उद्यमशीलता और देश के व्यापारिक औद्योगिक विकास में उनकी भूमिका को समझने में मदद करते हैं।
प्रभाष जोशी, पूर्व प्रधान सम्पादक, जनसत्ता, नई दिल्ली।
यह पुस्तक एक कर्मयोगी के अथक परिश्रम एवं संघर्ष का रोचक दस्तावेज ही नहीं…जीवन का सरस चित्रण भी है। अनेक रोचक प्रसंग…अंत तक पुस्तक को पठनीय बनाये रखते हैं…पुस्तक प्रेरणादायी ही नहीं, संग्रहणीय भी है।
शिवानी, सुप्रसिद्ध हिन्दी कथा लेखिका।
हमारे देश में व्यावसायिक जातियों और उनकी साहसिकता के संबंध में अभी तक बहुत कम शोध कार्य हुआ है। इस दिशा में डॉ. डी. के. टकनेत द्वारा लिखित यह शोध कृति विशेष महत्व रखती है। इसमें मारवाड़ी समाज की गौरवपूर्ण उपलब्धियों के साथ-साथ बी. एम. बिड़ला के व्यावहारिक अर्थशास्त्रीय चिंतन को एक साथ गूंथ कर ऐसी कृति तैयार की गई है जो औद्योगिक एवं साहित्यिक जगत को सदैव सौरभमयी करती रहेगी। आशा है इस शोध कार्य से प्रेरित होकर शोधवेत्ता व्यावसायिक साहसिकता पर और अधिक अध्ययन करने के लिए अभिप्रेरित होंगे।
प्र्रो एम. एम. खुसरो, सम्पादक, फाइनेन्षियल टाइम्स, नई दिल्ली।
यह पुस्तक सम्पूर्ण वैश्य समाज के गौरव का अनमोल दस्तावेज है। डांॅ टकनेत ने इस दिशा में जो कार्य किया है वह सराहनीय और अनुकरणीय है।
बनारसीदास गुप्त, पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा।
यह कृति शोध अध्ययन होते हुए भी, ‘अंदाजे बयां’ के कारण अत्यन्त रोचक है और विद्वानों के लिए चुनौती है कि प्रामाणिक तथा शोधपरक कृतियाँ भी आम पाठक के लिए आकर्षक हो सकती है।…यह ऐसी पुस्तक है जिस पर हिन्दी जगत गर्व कर सकता है।
जयप्रकाश भारती, वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक हिन्दुस्तान।
मेरा जो कुछ हिन्दी का ज्ञान है उसके आधार पर यह कह देना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जीवन कथा के बारे में मैंने ऐसी पुस्तक नहीं पढ़ी है, जिसमें लिखने की शैली भी अनोखी है।
राधाकृष्ण बिरला, भूतपूर्व संसद सदस्य, नई दिल्ली।
यह ग्रंथ बिड़ला परिवार की श्रम-साधना एवं देशभक्ति की जानकारी से परिपूर्ण संदर्भ ग्रन्थ है। इसे पढ़कर नयी पीढ़ी लगन, श्रम, देशभक्ति तथा मानवता की सच्ची सेवा का पाठ सीखकर प्रेरणा ग्रहण करेगी। पुस्तक अतुलनीय है।
डॉ गिरिजाशंकर त्रिवेदी, संपादक नवनीत, नई दिल्ली।